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टिम टिमाइत जिनगी / रामपुकार सिंह राठौर

दोना के दिया नियन ई जिनगी
समय के नदी में बहल जा रहल।

दुःख औ दरद के लहर के लहर
छन-छन छू-छू के बदल जा रहल।

काम के पछेया जोड़ ये चललै
क्रोर्ध आधी से डगमगा रहल।

लोभ के बदरी हे घुमड़ल कैसन
मोह अन्हरिया न कुछ बूझा रहल।

इरखा के ओला रह-रह के पड़े
मान के दोना हे खुलल जा रहल।

अचरज हे कैसे न बुझे दिया
बहल जा रहल औ टिमटिमा रहल।