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टीन की झालर / सरोज परमार

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उस स्लेट टँकी छत की
नवेली झालर
भोर होते ही रंग बदल लेती
कनखियों से हँस सी देती
सुरमई से गुलाबी बन जाती
तब छुअन तुम्हारी आँखों की
दिन भर को सिन्दूरी कर जाती
तब छुअन तुम्हारी आँखों की
दिन भर को सुन्दूरी कर जाती।
फिसली जाती तारें सोने की
जब भरी दुपहरी का सूरज
दिप-दिप आँखें झपकता
टीन की झालर दहकाता
घिरती मन के दरीचे में
भरी पसीने पेशानी चौड़ी ।
उस स्लेट टँकी छत की
टीन की झालर में
हर साँझ को झेलती हूँ
मुर्झाई पीलिया मारी किरणें
झेलती हूँ तुम्हारी थकन
मरी मरी सी उँगलियाँ
लस्त-पस्त सी साँसें
और पंक्चर साईकिल सा
तुम्हारा व्यक्तित्व ।
जब-जब दमकती है पूनो
झर-झर झरता है पारद
उस चाँदी की झालर से
चंदीली चादर,चंदीला तकिया
सोया चाँदी का राजकुमार ।
हरियाता तब मन उन्मन।
उनींदी आँखें तब खोजा करती
भीतर-बाहर,बाहर भीतर
अनचीन्हा डर,घुमड़ता मन
और तुम्हारी
सपनीली देह बन जाती
यकदम चाँदी मढ़ा ताबूत।
फैल जाता टुच्चा सूनापन,
मेरे आँगन ।
बेलाग सी तकती
मुँह बिराती
स्लेट टँकी छत की नवेली
टीन की झालर।