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टूट कर भी आइने डरते नहीं / नीरज गोस्वामी
Kavita Kosh से
झूठ को ये सच कभी कहते नहीं
टूट कर भी आइने डरते नहीं
हो गुलों की रंगो खुशबू अलहदा
पर जड़ों में फ़र्क तो दिखते नहीं
जिनके पहलू में धरी तलवार हो
फूल उनके हाथों में जँचते नहीं
अब शहर में घूमते हैं शान से
जंगलों में भेड़िये मिलते नहीं
साँप से तुलना न कर इंसान की
बिन सताए वो कभी डसते नहीं
कुछ की होंगीं तूने भी गुस्ताखियाँ
ख़ार अपने आप तो चुभते नहीं
बस खिलौने की तरह हैं हम सभी
अपनी मरज़ी से कभी चलते नहीं
फल लगी सब डालियाँ बेकार हैं
गर परिंदे इन पे आ बसते नहीं
ख़्वाहिशें नीरज बहुत सी दिलमें हैं
ये अलग है बात की कहते नहीं