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डरता चाँद / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
आसमान पर ही रहता क्यों
नीचे नहीं उतरता चाँ?
माँ! बतलाओ क्यों मुझसे
हर रात ठिठोली करता चाँद?
दूर-दूर ही चमका करते
ये झिलमिल-झिलमिल तारे।
पास बुलाऊँ तो शरमा
जाते हें सारे के सारे।
उनसे भी बादल में छुपकर
आँखमिचौली करता चाँद।
मैंने कहा, एक दिन मेरे
आँगन में भी आ जाओ।
मीठी-मीठी खा जाओ।
पर लगता है मेरे जैसे
छुटकू से भी डरता चाँद।