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डर / गुलज़ार हुसैन
Kavita Kosh से
सच लिखने वाले लेखक को भी डर लगता है
लेकिन वह हत्यारों की धमकियों और बंदूक से नहीं डरता
वह किसी संगठन के कंधे पर बैठे नेताओं के खूनी अट्टहास से नहीं डरता
वह इंसान का खून पीने वाले सत्ता पोषित झुंड के षड्यंत्रों से नहीं डरता
वह आग लगाने वाले फायरब्रांड ढोंगियों से भी नहीं डरता
उसे डर लगता है कि अपने सीने में कायरों की गोली खाने के बाद वह चुप हो जाएगा
कि नई पीढ़ी से कल वह सब नहीं कह पाएगा, जो वह कहने के लिए आगे बढ़ रहा था
कि वह इस दुनिया को और बेहतर बनाने के लिए और कलम नहीं चला पाएगा
नई पीढ़ी को राह दिखाने के लिए मौजूद नहीं रह पाने का अफसोस ही
लेखक का डर है