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डर / प्रिया जौहरी
Kavita Kosh से
देह की मुँडेर पर औरत करती है
मर्द के आने का इंतजार
प्यार के क्षणों में मर्द ईश्वर-सा लगता है
उसका प्रेम ही जैसे उसका आराध्य है
प्रेम में स्त्री डरती है कि
कही वह खो न दे अपने ईश्वर को
और रह न जाए तन्हा
जैसे शहर चौक खाली होता है जन के बिना
जैसे नदी सुख जाती है सावन के बिना ।