भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ढेरी / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
बुन्न एक ठाम ढेरी भेलासँ बनि जाइछ
पोखरि
लुत्ती एक ठाम ढेरी भेलासँ
आगि
बालु एक ठाम ढेरी भेलासँ
रेगिस्तान
विश्वास एक ठाम ढेरी भेलासँ
संबंध
शंका एक ठाम ढेरी भेलासँ
संबंध-विच्छेद
क्रोध एक ठाम ढेरी भेलासँ
विध्वंस
नोर एक ठाम ढेरी भेलासँ
शोक
प्रेम एक ठाम ढेरी भेलासँ
सृजन
सृष्टिक पहिले दिनसँ चलि रहल अछि
ई बेबहार
आ चलैत रहत
सभ दिन।