भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तनहाइयाँ-3 / शाहिद अख़्तर
Kavita Kosh से
जिस दिन उसने कहा अलविदा
जिस दिन मेरी जीस्त हुई तन्हा
जिस दिन मेरी आँखें सागर हुईं
उस दिन, उस दिन तुम मेरी हुई
हाँ, और मैं तेरा...
उस दिन मेरी आगोश में
अंगड़ाई ली मेरी तन्हाई
और तबसे निभा रही है वफ़ा