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तब तुझे मानूँ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
कुछ परिंदे उड़ गए थे
कफ़स की क़ैद से
शायद ख़ुदा की भी थी
इसमें रज़ा कोई
अय खुदा...!
किसी दिन
ज़िस्म की कैद से भी
आज़ाद कर
तब तुझे मानूँ....!!