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तलवा / हरिऔध
Kavita Kosh से
जब न काँटे के लिए काँटा बने।
पाँव के नीचे पड़े जब सब सहें।
जब छिदे छिल छिल गये सँभले नहीं।
क्यों न तब छाले भरे तलवे रहें।