यूँ सिमट आई थी कल रात तुम ख़्वाब में फिर
यूँ कि कोई मौज मचल जाए और साहिल से मिले,
यूँ कि महताब पिघल जाए फिर से शरमाकर
यूँ कि पानी को लगे प्यास किसी प्यासे से मिले
ये सच है कि तू थी और मैं भी ज़रा नींद में था,
ये सच है कि महकती रही तेरी ख़ुशबू से रात
ये सच है कि दिल रोशन है तेरी यादों से अब तक
ये सच है कि तेरा लम्स क़ायाम है मेरी साँसों में,
या तो अब बातांे को हम सच का सिलसिलाा कर दें
या कि ख़्वाबों से कहें कि अब दर्द का सबब न बनें
या ये कि तसव्वुर में निकल जाएँ हम उफ़क के परे
या यूँ कि रो ले रात भर तेरी तसवीर से गले लगकर।