दिन में
घास चमक रही थी
अब रात
तारे चमकते हैं
तारों के पार
वह सबेरा जो अभी
अँधेरा है
अँधेरे के पार
वह
सूरज
जो अभी दौड़ता हुआ
ललमुँहा बच्चा है
बच्चे के पार
वह इच्छा
जो
बुलबुल के पंखों में
उड़ान भर रही है
दिन में
घास चमक रही थी
अब रात
तारे चमकते हैं
तारों के पार
वह सबेरा जो अभी
अँधेरा है
अँधेरे के पार
वह
सूरज
जो अभी दौड़ता हुआ
ललमुँहा बच्चा है
बच्चे के पार
वह इच्छा
जो
बुलबुल के पंखों में
उड़ान भर रही है