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तालाबों में बची हैं / रमेश पाण्डेय

Kavita Kosh से
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तालाब में बची है शैवाल की

हरी खुरदरी कालीन


महुआ के पेड़ों की

हरी छाँव


मकई के हरे खेत

धान की हरी जवानी


बचा है अभी भी

अपनों के बीच अपनों की ख़बर का

चटख हरापन