ताश की मेज / इला कुमार

गोल मेज पर बिखरी हुईं
ताश की रंगीन पत्तियां
तीन काली बीबियों की बगल में
ठिठका ललमुंहा राज चुप है

जोकर के सिर के पास
नृत्य की भंगिमा में
सच का जोकर कांपता है

मद्धम रोशनी के घेरे
अभिजात्यिक भंगिमा में दबी कोमल आवाजें

ऐसा नहीं कि ईर्ष्या और पराजित होने की बात
वे भूल गये हैं
नये मंगलसूत्र की मोटी चेन
अव्यक्त दाह सिरजती तो है
बेअसर है बरसों के साथी की गैर-मौजूदगी

सबके ऊपर
ऊब की ठंडी धार
अंदर ही अंदर रंगों को खखोरती है!

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.