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तीन कविताएँ / सौरभ
Kavita Kosh से
एक
सुबह का सूरज
तरोताज़ा
नारंगी
साँझ का सूरज
थका हुआ
नारंगी।
दो
चिड़िया अपना घोंसला बना
चहचहा रही है
राही अपनी मंजिल पर पहुँच
सो रहा है
बैल हल जो सुस्ता रहे हैं
कुली बोझा उतार
बीड़ी सुलगा रहा है
भक्त पूजा कर आरती गा रहा है
बच्चे होम वर्क कर खेल रहे हैं
सूरज ढल रहा है
धुँध छँट रही है
साधु की आँखों की चमक
बढ़ रही है।
तीन
पँछी गा रहे हैं
हम जा रहे हैं
बादल बरस रहे हैं
हम तरस रहे हैं
मोर नाच रहे हैं
हम उछल रहे हैं
घोड़े भाग रहे हैं
हम बैठ रहे हैं
बूढ़ा सड़क पर छटपटा रहा है
हम देख रहे हैं।