आसमान में घूम रहे हैं
इंद्र देवता के घोड़े,
सरपट-सरपट चाल दिखाते
खाकर बिजली के कोड़े!
नटखट खूब कुलाँचें भरते
रूप धरे मृग-छौने का,
अलल-अलल पानी लुढ़काते
नभ के भरे भगौने का!
कुछ हल्के-फुलके बादल तो
लगते बिलकुल छुई-मुई,
सूरज-धुनिया भूल गया हो
जैसे अपनी धुनी रुई!