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तुक बिठाने के लिए / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
ऊपर उतराता है जितना
अनर उतना ही ऊबा है
हँसता दिखता है जितना
उतना- यही तुक होगी- ऊबा है।
उतराने-डूबने
हँसने ऊबने की तुक मिलाने में
बेतुका ख़ुद हो जा रहा है वह
जैसे तुक तेली की कोल्हू-
पर उसमें भी एक तुक तो है
बीच में बैल कोई
बुला ले गर वह
या उसकी भूमिका
ख़ुद ही निभा ले वह।
मगर तेल कब कैसे निकलेगा
तिलों में ही नहीं है जो?
ये लो, तुक बिठाने के लिए
ख़ुद ही
बन कर तेल पिल गया है वो।