भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुक बिठाने के लिए / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊपर उतराता है जितना
अनर उतना ही ऊबा है
हँसता दिखता है जितना
उतना- यही तुक होगी- ऊबा है।

उतराने-डूबने
हँसने ऊबने की तुक मिलाने में
बेतुका ख़ुद हो जा रहा है वह
जैसे तुक तेली की कोल्हू-
पर उसमें भी एक तुक तो है
बीच में बैल कोई
बुला ले गर वह
या उसकी भूमिका
ख़ुद ही निभा ले वह।

मगर तेल कब कैसे निकलेगा
तिलों में ही नहीं है जो?
ये लो, तुक बिठाने के लिए
ख़ुद ही
बन कर तेल पिल गया है वो।