तुमने दायित्व दिया क्षण का
बोध हुआ एक सगेपन का ।
शब्द मेरे वे न थे —
कि जिन्हें गीतों में नीम्बू-सा निचोड़ा
शब्द थे वे
कि जिन्हें नक्षत्रों में प्रक्षेपणास्त्र-सा छोड़ा
रचनात्मक सूत्र गढ़ा
जिनसे
दिक्-काल के गठन का ।
शिल्प मेरा वह न था
कि प्रश्नों को देखा विराम की आँखों
शिल्प तो वह था
कि इतिहास को देखा आयाम की आँखों
ज्यामिति जिसकी
परिभाषित
किया कोण मन का ।
चित्र मेरे वे न थे
कि जिन्हें टाँगा कोठरियों, ओसारे पर
चित्र तो वे थे
कि जिनसे चरित्र लिया भाड़े पर
नया-नया अर्थ रचा
जिनसे
युग के संयोजन का ।