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तुमने दायित्व दिया क्षण का / रामचन्द्र ’चन्द्र भूषण’

         तुमने दायित्व दिया क्षण का
         बोध हुआ एक सगेपन का ।

शब्द मेरे वे न थे —
कि जिन्हें गीतों में नीम्बू-सा निचोड़ा
शब्द थे वे
कि जिन्हें नक्षत्रों में प्रक्षेपणास्त्र-सा छोड़ा

         रचनात्मक सूत्र गढ़ा
         जिनसे
         दिक्-काल के गठन का ।

शिल्प मेरा वह न था
कि प्रश्नों को देखा विराम की आँखों
शिल्प तो वह था
कि इतिहास को देखा आयाम की आँखों

         ज्यामिति जिसकी
         परिभाषित
         किया कोण मन का ।

चित्र मेरे वे न थे
कि जिन्हें टाँगा कोठरियों, ओसारे पर
चित्र तो वे थे
कि जिनसे चरित्र लिया भाड़े पर

         नया-नया अर्थ रचा
         जिनसे
         युग के संयोजन का ।