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तुमने मधुमास लिखा / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
पाती आई कल
उसमें तुमने मधुमास लिखा
ठूँठ हुई साँसें हरियाईं
फूल खिले
छज्जे बैठे चिरी-चिरौटे
गले मिले
सूरज छत पर उतरा
हमको हँसता हुआ दिखा
ज़िंदा जैसे
कमरे की हर चीज़ लगी
आँखों में आ धूप छिपी
वह हुई सगी
लगा कि जैसे
जली देह में कोई दीपशिखा
खिड़की पर आकर बैठी
पीली तितली
कल आओगी-
पढ़कर पाती लगी भली
बाहर-भीतर खिंची
कि जैसे ख़ुशबू की परिखा