भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा चेहरा / आलोक श्रीवास्तव-२

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कल का तुम्हारा
इतना खुश चेहरा
भूल नहीं पाऊँगा

जो भीतर-ही-भीतर
स्वीकार करता प्यार को
उत्फुल्ल हो उठा था

और जिस पर
दुख की आड़ी-तिरछी
तमाम लकीरों के बीच
रात्रि का एक
सुदूर उदित
तारा लिखा था ।