भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारा जाना / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
जब शब्दों में
चीखने लगी वेदना
रोम रोम प्रवाहित होता रहा
तुम्हारे साथ बिताया सफ़र
करुणा से भरी तुम्हारी आवाज
तोड़ने लगी दम
हमारे दिलों में टूटने लगे
अनगिनत शीशे
चुभने लगी आँखें
इस बार आँसू के रंग अलग थे
किसी ने किसी के नही पोछे
सबने जिया तुम्हारे जाने का दर्द
तुम्हारे गुनगुनाते भजनों मन्त्रों की
छुपी आवाजों से
कराहती रही मंदिर की
बेआवाज घंटी
तुम्हारी टूटती साँसों को
बचाने आये सभी देवी देवता
हार कर समां गए तुम्हारे भीतर
एक झटके ही बड़ा हो गया
तुम्हारा छोटा बेटा
हमारे घर में तुम्हारी ममता महकती थी
मीठा दूध महकता था
घर की नींव पर तुमने कुछ फूल दबाये थे
वो अपने साथ ले गई क्या?
बेरंग उदास दीवारों की महक
बड़ी भयावह होती है अम्मा...