तुम्हारी आँखों के ज्यामितीय बॉक्स में / आर्य भारत
तुम्हारी आँखों के ज्यामितीय बॉक्स में,
मेरे जिस्म के जंगल से
तुम्हारी रूह की राजधानी तक के सफर के लिए,
बिछी है प्रेम की पटरियाँ
जिसपर सरपटदौड़ने के लिये तय्यार खड़ी है
अपनी जिन्दगी की रेल
मैं साथ लाऊंगा जंगलो से अपना जंगलीपन
जिसको एक समबन्धे चार सम्बन्धे तीन के अनुपात में विभाजित कर देना तुम
उछाल देना जरा आसमान में
'चाहत का चांदा'अपनी आँखों से
जिससे मेरे चीड़ सरीखे लम्बें हाथों को,
सलाम दुआ करने आ जाए,
मेरे शाल सरीखे सीने पर
अपनी पलकों के पेंसिल से
आसुओं का रेखा चित्र अंकित कर देना,
जिसका अनुवाद करने को मेरा जड़-चेतन
परत दर परत पन्नों में तब्दील होने लगे,
मेरी जंगली झील की पुतरी पर
रख देना अपनी कल्पना का कम्पास
जिससे अपनी दृष्टि के अक्ष पर
घूम सकूँ 360 अंश
निकाल सकूं मथ कर
खुद का जीवन वृत्त
ऐसा करते अनायास ही
मेरे ख़ुर पंजों में
लपलपाती जुबान जीभ मे
खाल कपड़े में परिवर्तित हो जाएगा
और जंगली बू-बास
खो जायेगा
तुम्हारी आंखो के ज्यामितीय बाक्स में