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तुम्हें देखने के लिए / श्रीकान्त जोशी
Kavita Kosh से
मैंने तुम्हें देखने के लिए
पुस्तकें हाथ में लीं और रखीं
मैंने तुम्हें देखने के लिए
अनेक अधबनी कविताएँ चखीं।
मैंने तुम्हें देखने के लिए
खिड़कियों के अधपट ढुलकाए
मित्रों को अनसुना किया
वायदों में झूठ बिखराए!
तुमने यह कुछ न किया
केवल अँगुलियों में लिपटते हुए
आँचल के कोने
कुतर खाए!!