जब - जब
			मुसकुराती हो
बहुत भाती हो ! 
तुम
हर बात पर क्यों
मुसकुराती हो ! 
जब - जब
सामने जा स्वच्छ दर्पण के
सुमुखि ! 
शृंगार करती हो, 
धनुषाकार भौंहों - मध्य
केशों से अनावृत भाल पर
नव चाँद की
बिन्दी लगाती हो, 
स्वयं में भूल
फूली ना समाती हो
बहुत भाती हो ! 
नगर से दूर जा कर
फिर
नदी की धार में
मोहक किसी की याद में
दीपक बहाती हो
बहुत भाती हो ! 
मुग्धा लाजवंती तुम
बहुत भाती हो ! 
जब बार - बार
मधुर स्वरों से
मर्म-भेदी
चिर-सनातन प्यार का
मधु - गीत गाती हो
पूजा - गीत गाती हो
बहुत भाती हो !