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तुम आओ तो जताएँ / शिव रावल

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बीते हुए लम्हों की कसक,
तुम बिन इस कल-आज-कल के दरमियाँ कमा के रखा वह बेहिसाब दर्द,

हसीं ख्यालों में संवार के रखी वह अनगिनत ख्वाइशें,
हिज़्र की सौगात से लेकर तेरे आने भर के तसवुर तक के दौर में छिड़े उन शिकवे-शिकायतों का ज़िक्र,

कितना कुछ हम दिल पर लिए फिरते हैं हमदम,
तुम आओ तो जतायें तुम्हे।