भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम कहाँ तक बचोगे / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम किसी तरह के
 गुमान में न रहो
तुम्हें किसी दिन गिरफ़्तार
किया जा सकता है
उनके पास तुम्हें गिरफ़्तार
करने की बहुत सी वजहें हैं

तुम चान्द देख रहे होंगे
तो कहा जाएगा कि
तुमने टैक्स नही अदा
किया है

झरने से पानी पी रहे होंगे
तो यह वजह बना दी जाएगी
तुमने अनुमति नही ली है

अगर तुम किसी राष्ट्रीय खलनायक
को देख कर मुस्करा रहे होंगे
तो कहा जाएगा कि
तुम्हारा मुस्कराना असंसदीय है

तुम कहाँ तक बचोगे
लोग तुम्हारे घर को खंगाल
डालेंगे और वहाँ कोई न कोई
आपत्तिजनक चीज़ मिल ही जाएगी

अगर तुम बचना चाहते हो तो
उनकी हर बात से सहमत
होना सीख जाओ

वे रात को दिन और हिंसा को
अहिंसा कहें तो यह मान लो
कि वे सही कह रहे है

 तुम यह भूल जाओ कि तुम्हारे भीतर
किसी आत्मा का वास है ।