तुमने मुझको बाँध लिया है मधुर स्नेह की डोर से
मेरा भावुक मन बाँधा है छवि-अंचल के छोर से
कल-परसों की बात, हृदय ने झाँका छवि को ओट से
दिल ही तो था, घायल हो बैठा चितवन की चोट से
तुम विहँसी, मेरे सपनों पर झरे जुही के फूल री
अनजाने गुँथ गईं टहनियाँ, वायु बही अनुकूल री
भींग गई जीवन की धरती, सुख के उदधि-हिलोर से
गूँज उठा यौवन का मधुवन आनन्दों के रोर से
मेरा जग था सूना-सूना घोर तिमिर ही साथ था
और सहारे के मिस अपने में ही अपना हाथ था
तुम चमकी मेरे जीवन में जैसे बिजुरी बाबरी
दृक्पथ से अन्तर पर उतरी बाँकी झाँकी सांवरी
तुमने दिये उछाल अश्रु हँस कर उँगली की पोर से
काली रात बदल दी तुमने अमर सुहासी भोर से
तुमने मुझको बाँध लिया है मधुर स्नेह की डोर से
-19.4.1940