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तुम तो थे रूठे ही / जीवन शुक्ल


तुम तो रूठे थे
चित्र और रूठ गया

जहा सहा संयम से
नाता था टूट गया

उर्मिल हो उठी पीर
रोकेगा कौन मरुद
तिरते से पातों को

छाला यह अंतस का
असमय ही फूट गया

मेरा मन मानी है
तसरा अभिमानी है

कमलों की नालों को
रितु का शिशु कूट गया ।