भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम नदिया के पार चलो / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई मुझे बुलाता-आओ, ले लो यह पतवार चलो।
अपने साथ मुझे भी लेकर तुम नदिया के पार चलो।

पार नदी के हम-तुम होंगे
और हमारा घर होगा।
धरती होगी बनी बिछौना
चादर यह अम्बर होगा।
यहाँ नहीं कर पाते हो तुम करने मुझको प्यार चलो।
अपने साथ मुझे भी लेकर तुम नदिया के पार चलो।

वहाँ तुम्हें मुझसे मिलने से
कभी न कोई रोकेगा।
जी भर जी की बातें करना
कभी न कोई टोकेगा।
एक-एक क्षण मूल्यवान है करो न सोच-विचार, चलो।
अपने साथ मुझे भी लेकर तुम नदिया के पार चलो।

यह सच मानो वहाँ पहुँचकर
तुम इतना रम जाओगे।
लाख बुलाना चाहे कोई
तुम न लौटकर आओगे।
पार नदी के इतना प्यारा बसता है संसार, चलो।
अपने साथ मुझे भी लेकर तुम नदिया के पार चलो।