भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम मत बोलना / अज्ञेय
Kavita Kosh से
मालती की गन्ध
बोलेगी तुम अभी मत बोलना
कह गया है जो पपीहा
उस व्यथा की परत तुम मत खोलना
सुना जो वही तो यह उमगता है
नहीं कहते-कह न पाते!-वही भीतर सुलगता है
कसमसाती उमस यह-तुम भी इसी में
उमड़ता अनल-रस घोलना
उठेगी उस में लहर फिर
तुम उसी पर दोलना-
मत बोलना! मत बोलना!