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तुम मिल गए किरण से / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
दुख की अधीर बदली छितरा गई गगन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।
ये प्राण बेसहारे
संकेत पर तुम्हारे
कुछ कह गए अधर से, कुछ कह गए नयन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।
मृदु प्यार में युगों से
पाले हुए भरोसे
फिर होड़ ले रहे हैं हर सृष्टि के सृजन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।
हर सांस का नयापन
विश्वास का नयापन
कहता महक-महक जा बहके हुए पवन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।
कुछ इस तरह दशा है
छाया हुआ नशा है
ज्यों मुक्ति मिल गई हो नवसत्य को सपन से ।
तुम मिल गए किरण से, हम खिल गए सुमन से ।