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तुम हो बादल / सुरेन्द्र स्निग्ध
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नवम्बर की इस सर्द दोपहरी में
मेघों से आच्छादित है आकाश
लबालब भरा हुआ है विस्तृत नभ
शहद के मधुछत्ते जैसा
अब छलका
कि तब छलका
मेरे मन के आकाश में
बरस जाने को व्याकुल
भारी बादलों की तरह
उमड़-घुमड़ रही हो तुम
तुम हो बादल
तुम बरस रही हो
भीग रहा है मेरा तन-मन
भीग रही है
नवम्बर की सर्द दोपहरी।