Last modified on 6 जुलाई 2010, at 04:49

तू बड़ा निष्ठुर होता है / ओम पुरोहित ‘कागद’

तू कहा रहता है
कैसा होता है
मैं नही जनता!

मेरी तपती देह पर
मृग भगता
भाग मरता
पर तुम्हें नहीं पाता।

मौत से पहले
मृग का सपना
क्या तू ही होता
अगर तू ही होता है
तो अरे जल!
तू बड़ा निश्ठुर होता है।