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तू ही नहीं अधीर / गुलाब खंडेलवाल


तू ही नहीं अधीर
तेरे पहले भी औरों को रुला गयी यह पीर
 
पद गाये कबीर ने झीने
गीत बंग-कवि ने रसभीने 
मीरा सूर और तुलसी ने
हृदय रख दिया चीर
 
पर उनमें था श्रद्धा का बल
लक्ष्य नहीं होता था ओझल
तू शंका, दुविधा में प्रतिपल
कैसे पाये तीर!
 
जब तू चन्दन बन जायेगा
अपने को घिसकर लायेगा
तभी विश्व यह दुहरायेगा
तिलक करें रघुवीर

तू ही नहीं अधीर
तेरे पहले भी औरों को रुला गयी यह पीर