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तोंही रहबो / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
तोरा हम
तीन दफे से जादे नै कहबो
चौथे तो चहेटिये देबो
चाहे चतुर रहो या गँवार
सिधका के ठकभो तब मेटिये देवो
ई सिधका
सब सुरियाल तोरे दने आबऽ हो
ई पढ़लका उड़ियाल तोरे दने आबऽ हो
आँख के
आन्हर तो हइये हा
कान में कस ठेठिये देबो,
न देखबा न सुनबा
तकली चलैबा, धुनकी धुनबा
तोहर धुनकी के
तांत टुटै के देर हो
गियारी में साँप लपेटिये देबो
हम तोरा
तीन दफे से जादै नै कह सकऽ हियो
आय तक
मुँह ममोरने ऐला हे
गरिबका के मुँह में
माहुर घोरने ऐला हे
केतना तो भूख से
छटपटा के मरलै
केतना बिमारी से
टटा-टटा के करलै
कुछ नै छोड़ला सेस
केतना देस छोड़ के
चल गेलै विदेस
अब तोहीं कहो
ई कैसे होतै कि
हम मर जाय आउ तोहीं रहो?