भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोहके देखे बदे / सुभाष चंद "रसिया"
Kavita Kosh से
तोहके देखे बदे हम बहाना करी।
केहू पुछेला हमसे त ना-ना करी॥
बात दिल के करी दर्द खुद ही सही।
गम की दरिया में रोजहि डूबत रही।
होजा अँखियाँ से ओझलत आहे भरी॥
केहू पुछेला हमसे त ना-ना करी॥
पतिया लिखली सारी रैना हम जाग के।
यश विधाता बनवलेअब मोरी भाग्य के।
लेके हथवा में पतिया छुपावल करी॥
केहू पुछेला हमसे त ना-ना करी॥
बिना पर के परिंदा निहन हाल बा।
भरल रहिया में बहुते ही जंजाल बा।
का कहि अब जमाना खुद से डरी॥
केहू
लोर से गमछा रसिया जी तर हो गइल।
बिना पानी के मछली-सा डर हो गइल।
याद में तोहरी ढिबरी जरावल करी॥
केहू पुछेला हमसे त ना-ना करी॥