Last modified on 13 जुलाई 2007, at 18:25

त्योहार और स्त्रियाँ / कुमार अंबुज


त्योहार और स्त्रियाँ

त्योहार लाते हैं
रेशम-गोटे की कढ़ी हुई साड़ियाँ
और बक्से में रखे आभूषण
स्त्रियों की देह पर

त्योहार जगाते हैं रात भर
कथा-कीर्तन के साथ उपवास कराते हैं
दिन भर काम करनेवाली स्त्रियों से

त्योहार कपड़े लाते हैं बच्चों को
मिठाइयाँ भी
और लाते हैं पुरुषों के लिए असीम प्रार्थनाएँ
स्त्रियों के रोम-रोम से

त्योहार की अन्तिम-वेला में
जोड़-जोड़ से तड़की हुई स्त्रियाँ
पोर-पोर में उल्लास लिए
बिस्तर पर जा गिरती हैं-

जैसे गिरती हैं
अगले त्योहार की थकान में !

(1985)