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थकेगा न हारेगा / कविता भट्ट
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11
मन-अर्पण
जिन पग निकसी
गंगा पावन।
12
पार्वती रूठी
जटा शंकर धरे
गंगा अनूठी।
13
शिव सम्मुख
नतमस्तक गंगा
तोय-तरंगा।
14
प्रिया महान!
गंगा-सागर जाना
एक ही ध्यान
15
मीलों चलती-
नदी- मन सागर-
प्रीत पलती।
16
डाकिया नदी
नित पर्वत चिठ्ठी
सागर देती।
17
निश्छल बहे-
नदी-सा गतिमान
जीवन रहे।
18
रहे शिखर-
हिम, सरित बन
अम्बर घन।
19
निष्ठुर प्रेमी-
सागर ने न बाँची
नदी की पाती।
20
पुण्य-सलिला
कृतघ्न को भी सींचे
उदारमना।
21
जीवन प्रश्न
थकेगा न हारेगा-
नदी-सा मन।