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थांरी साख मांय / नीरज दइया
Kavita Kosh से
(आदरजोग श्री कन्हैयालाल भाटी खातर)
अंधारै मांय भटक जांवतो
जे थे नीं बतावता
मारग।
कांई हुवै...
फगत बतायां मारग
जे नीं बापरै पतियारो
जे नीं हुवै सरधा
जे नीं हुवै मन
नीं जागै उमाव
अर नीं आवै लड़णो?
पीड़ मांय
रैयो म्हैं रातूं
फगत थां ई’ज देख्यो
म्हैं नदी हो-
आंसुवां री।
थांरी साख मांय
म्हैं करी ओळख
कै कांई-कांई कर सकै है पग
अर कांई-कांई करीज सकै है
पगां सूं।
भीड़तै मोरचै ई’ज
हुई सैंध
अबखै मारग सूं।
म्हैं ओळख लियो
कै किसो मारग
कठै जावै- पूगावै है?
आज मारगां रै डाट्यां
नीं डटूलां सरकार।
म्हैं टोपो हूं
भलांई थारी जाण मांय
पण नदी हूं
म्हारी पिछाण मांय।
पतियारो है म्हनै
म्हैं पाछो बावड़ूंला
बण परो मेह
थांरै गांव!
म्हारै गांव!!