थायरॉयड / अजित सिंह तोमर
बेशक ये बदलाव
हार्मोनल था
मगर इस बदलाव में कोई क्रान्ति न थी
ये एक छिपा हुआ प्रतिशोध था
ये देह को मजबूरी के चरम तक देखने का
देह का एक बड़ा सस्ता मगर क्रूर प्रहसन था
थायरॉइड से लड़ती एक स्त्री की देखी फीकी हँसी
थायरॉयड से लड़ते एक पुरुष का देखा बोझिल गुस्सा
दोनों में एक बात का साम्य था
दोनों जानते थे अपनी थकन का ठीक ठीक अनुमान
व्याधि स्त्री पुरुष को कैसे मिला देती है एक बिंदु पर
साम्यता की यह सबसे गैर गणितीय समीकरण थी
मैंने पूछा जब एक स्त्री से थायरॉयड के बारें में
वो ले गई मेरा हाथ पकड़ कर दीमक की बांबी तक
उसने दिखाया चीटियों को कतार से चलते हुए
उसने दिखाई सीमेंट से पलस्तर हुई दीवार
यही सवाल जब एक पुरुष से किया मैंने
वो बैठ गया ऊकडू
धरती पर बनाया उसने एक त्रिभुज
उसने गिनवाईं अपनी धड़कनें
और लगभग हाँफते हुए बताया
उसे नही है अस्थमा
थायरॉइड उत्तर आधुनिक बीमारी है
ऐसा देह विज्ञानी कहते है
मनोविज्ञान इसे अपनी वाली बीमारी मानता ही नही
जबकि ये सबसे ज्यादा घुन की तरह चाटती है मन को
थायरॉयड से लड़ते स्त्री पुरुष को देख
ईश्वर के होने पर होने लगता है यकीन
वही मनुष्य को इस तरह लड़खड़ाता देख
हो सकता है खुश
और बचा सकता है प्रार्थना के बल पर अपनी सत्ता
थायरॉयड से लड़ते लोगो के परिजन
दवा के अलावा बहुत सी बातों से रहते है अनजान
उन्हें नही पता होता है
जब हँस रहा होता है एक थायरॉयड का मरीज़
ठीक उसी वक्त वो तलाश रहा था होता पैरो तले ज़मीन
गुरुत्वाकर्षण उससे खेलता रहता है आँख मिचोली
मोटापा बन चुका होता है
उसकी जॉली नेचर का एक स्थायी प्रतीक
थायरॉयड दरअसल उस गलती की सजा देता है
जो गलती आपने की ही नही होती कभी
थककर मनुष्य लौटता है पूर्व जन्म में
याददाश्त पर जोर देकर सोचता है
पूर्व जन्म के पाप
या विज्ञान के चश्में से पढ़ता है आनुवांशिकी
जब नही मिलता कोई ठीक ठीक जवाब
फिर डरते डरते पीता है पानी घूँट-घूँट
प्यास में पानी से
भूख में खाने से
डरना सिखा देता है थायरॉइड
और डरा हुआ मनुष्य जिस आत्म विश्वास से
लड़ता है लड़ाई इस बीमारी से
उसे देख थायरॉयड से पीड़ित व्यक्ति के
पैर छू लेना चाहता हूँ मै
मेरे पैर छू लेने से थायरॉइड नही छोड़ेगा
किसी स्त्री या पुरुष को
ये जानता हूँ मै
मगर और कर भी क्या सकता हूँ मैं
सिवाय इसके कि
थायरॉइड के बारें में थोड़ा बहुत जानता हूँ मै
जितना जानता हूँ वह पर्याप्त है
मुझे डराने के लिए।