भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थिएटर-1 / विष्णुचन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब कुछ सलीके से है यहाँ
सिर्फ दिल बहक जाता है
सिर्फ फूल दिल से खिलता है
सिर्फ मंच पर जब कई वाद्य-यंत्र एक साथ बज रहे हैं
तो दिल आकाश में विचरता है
आँखें अंधेरे उजाले के बीच बंद हो जाती हैं
सिर्फ चेहरे एक थिएटर में उतरते हैं
और मंच की रोशनी के बीच एक मन
बजाता है गिटार
और ध्वनि भीतर टकरा जाती है।