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थोड़ा नमक था / राजीव रंजन प्रसाद

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मेरे क्षेत्र में
भूख से कोई मर नहीं सकता
मीडिया के आरोपों से सांसद महोदय तैश में थे
मानो घर के आगे उन्होंने लंगर खोल रखा हो।
आंकडे "नेताईयत " की आत्मा हैं
मगर कम्बखत परमात्मा तो वही नंगा है
जो मर कर जी का जंजाल हो गया है...

नेता जी गुरगुराये, माईकों के बीच मुस्कुराये
पिछले साल सौ में से सैंतालीस मौतें मलेरिया से
तिरालिस डाईरिया से, चार कैंसर से, छ: निमोनिया से..
सरकारी आँकडों की गवाही है
कीटाणुओं तक के पेट भरे हैं
आदमी की क्या दुहाई है?
सरकारी योजनाओं में हर हाँथ कमाई है,
निकम्मे हैं, इसी लिये नंगाई है..
फसले झुलसती हैं, मुआवजा मिलता है
दुर्घटना, बीमारी या बेरोजगारी सबके हैं भत्ते
थुलथुल गालों के बीच मूँछें मुस्कुरायीं

सवाल मौन हो गये, गौण हो गये...

और दूर उस गाँव में जो मौत बबाल हो गयी थी
उसके तन की दुर्गंध फैलने लगी थी
उसके भैंस की खाल सी
काली, मोटी, सिकुडी चमडी
जैसे पानी की बूँद देखे, बीती हों सदियाँ..
जाँच करने वाले डाक्टर
नाक में रूमाल रख कर, विश्लेषण में मग्न थे
पुलिसिये लट्ठ लिये खाली बर्तन ठोक रहे थे
मौत जब सनसनीखेज हो जाये
कितनों की परेशानी बन जाती है..

अचानक कुछ आँखों में चमक सा
घर के एक कोने में, पत्ते के दोने में
आधा खाया हुआ प्याज, थोडा नमक था....।

मौत भूख से नहीं हुई है
पेट की बीमारी है
जाँच पूरी है, रिपोर्ट सरकारी है...

30.04.2007