अर्राते पेड़ों के आस-पास
गूँजती रही
दगड़्या को दी आवाज़ ।
शताब्दी के सवालों के
समाधान की शक्ल खोजती रही
दगड़्या को दी आवाज़ ।
मिट्टी से सने दिनों
और ज़िन्दगी के धूसर पहाड़ों पर
लिपटी रही
दगड़्या को दी आवाज़ ।
अर्राते पेड़ों के आस-पास
गूँजती रही
दगड़्या को दी आवाज़ ।
शताब्दी के सवालों के
समाधान की शक्ल खोजती रही
दगड़्या को दी आवाज़ ।
मिट्टी से सने दिनों
और ज़िन्दगी के धूसर पहाड़ों पर
लिपटी रही
दगड़्या को दी आवाज़ ।