ददरिया / चंद्रशेखर चकोर

तंय कुहुक झन कोइली,
सुहावत नइये बोली।

बइठे गोबरहिन बमभूर छईहा।
मोर खेती हे झुख्खा आंखी म लईहा॥

कउहा म खोंधरा झुलत हे डोरी।
का मंगईया बनंव के करंव चोरी।

ठों ठों हे दर्रा भरकाहा नहर।
का खेती ल बेंचसी जावंव सहर॥

अइलाहा धान अउ हरियर कांसी
का लईका सुवारी संग लगा लंव फांसी।

ठुड़गा त ठाढ़े गाहदे रुख हे चूप।
होगे जिनगी भंवर अउ दुनिया कुलूप ॥

नवा है भांड़ी चिकन परदा।
ये दे भट के मन देवता देखा दे निक रद्दा॥

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