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दरपण..!! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
ओ दरपण जबरो नैणां रो !
रह लाख भलाईं बण्यो ठण्यो
तूं ई्र में साव उघाड़ो है,
मिसरी सो मीठो बोलै पण
लखणां रो जाबक माड़ो है,
ओ साचो साचो अरथ कवै
झट थारै कूड़ा बैणां रो !
तू पुन रो पळको दे’र दकै
क्यूं मूंडा थारै पापां रो,
पुतळी में भळको पडयां सरै
मन रै कालींदर स्यापां रो,
कोई सै भौदू रो लेसी
भख चिलको कपड़ों गैणां रो !
ओ थारै तन री लंका रो
भेदू साख्यात विभीषण है,
तूं ईं नै कोनी देख सकै
ओ देखै थारा ओगण है,
ओ परतख परचो दे देवै
मिनखां नै बैरयां सैणां रो ।