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दरवाजे - 2 / राजेन्द्र उपाध्याय

मैं उसके भीतर जाने की सोचता रह जाता हूँ
कहीं कहीं तो खड़े होते ही खुल जाते हैं दरवाजे
कहीं कहीं तो लाख कोशिश करो नहीं खुलते

इस जन्म में मेरे लिए बंद रहे कितने दरवाजे
शायद अगले जन्म में खुलेंगे
जब अच्छी किस्मत लेकर जन्म लूंगा।

'खुल जा सिमसिम' का वरदान मुझे नहीं मिला

दरवाजे ही एक दिन दीवार बन जाते हैं
जानते हैं सामने दरवाज़ा है
पर पत्थर की दीवार लगता है

दरवाजे हमें हमशा ऊपर नहीं ले जाते
अंधेरे तहखानों में पाताल में भी ले जाते हैं।

दरवाजों से सावधान रहो
एक बार उनके भीतर गए
कि वापस लौटना मुश्किल होगा।