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दर्द ये आया कहाँ से / विजय वाते
Kavita Kosh से
दर्द ये आया कहाँ से, कोई क्या जाने, भला।
याद के कितने ठिकाने, कोई क्या जाने, भला।
कामयाबी एक चमकता रोशनीघर है, मगर
कौन सी कश्ती कहाँ है, कोई क्या जाने, भला।
जल रही है आग अब भी, राख के नीचे कहीं,
आन्धियों वाले, भुलावे कोई क्या जाने, भला।
एक लम्बी कूद जैसी हो गई है ज़िन्दगी,
राह के मंज़र सुहाने, कोई क्या जाने, भला।
कुछ सबब बैचेनियों के तेरे अन्दर है, ज़रूर,
जब 'विजय' तू खुद न जाने, कोई क्या जाने, भला।