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दर्द हो तो दवा करे कोई / रियाज़ ख़ैराबादी
Kavita Kosh से
दर्द हो तो दवा करे कोई
मौत ही हो तो क्या करे कोई
बंद होता है अब दर-ए-तौबा
दर-ए-मयख़ाना वा करे कोई
क़ब्र में आ के नींद आई है
न उठाए ख़ुदा करे कोई
हश्र के दिन की रात हो कि न हो
अपना वादा वफ़ा करे कोई
न सताए किसी को कोई ‘रियाज़’
न सितम का गिला करे कोई