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दहलीज़ / निदा नवाज़

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रात के एकांत में
खिड़की के रास्ते आकर
उस को नहलाती है
चांदनी
और उसे कभी भी
ज़रूरत नहीं पड़ती
अपने घर की
दहलीज़ फलांगने की.