भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दहलीज़ / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
रात के एकांत में
खिड़की के रास्ते आकर
उस को नहलाती है
चांदनी
और उसे कभी भी
ज़रूरत नहीं पड़ती
अपने घर की
दहलीज़ फलांगने की.