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दहशत की मंज़िल दिख़लाने वाला था / मनोहर विजय

दहशत की मंज़िल दिख़लाने वाला था
वो मौसम बेघर कर जाने वाला था

सब से पहले मुझको जख्म दिये उसने
मैं ही उसको प्यार सिख़ने वाला था

उसने ही ख़ुद हाथ हटाये थे पीछे
मैं तो उस पर जान लुटाने वाला था

मौसम ही ने बदल लिये तेवर अपने
मैं गुलशन में फ़ूल ख़िलाने वाला था

सबकी ज़ान का दुशमन जब दम तोड़ चुका
सब खुश थे मैं ख़ैर मनाने वाला था

तू ही उजालों से क्यूँ है महरूम ‘विज़य’
तू भी तो इक दीप जलाने वाला था